अररिया जिले के नरपतगंज प्रखंड के अंतर्गत आने वाला झाकहार चौहान टोला गांव इन दिनों एक बड़ी सामाजिक समस्या से जूझ रहा है। जहां एक ओर सरकार शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर इस गांव में शराब का अवैध कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है। नतीजा यह है कि गांव का माहौल बिगड़ता जा रहा है और युवा पीढ़ी का भविष्य अंधकार में डूबता नजर आ रहा है।
गांव के लोगों का कहना है कि रात होते ही शराब बेचने और पीने वालों की गतिविधियां तेज़ हो जाती हैं। शराब के अवैध ठिकाने गांव के कई हिस्सों में खुलेआम संचालित हो रहे हैं। स्थानीय प्रशासन की कार्रवाई के बाद भी कुछ दिन शांति रहती है, लेकिन फिर से वही कारोबार शुरू हो जाता है। यह चक्र वर्षों से चला आ रहा है।
युवा पीढ़ी पर बुरा असर
गांव के कई बुजुर्गों का कहना है कि पहले यहां के नौजवान मेहनती, ईमानदार और शिक्षा के प्रति जागरूक थे। लेकिन अब शराब की लत ने युवाओं को आलसी, हिंसक और अपराध प्रवृत्ति का बना दिया है। कई युवा खेती-बारी या पढ़ाई छोड़कर शराब पीने और बेचने के जाल में फंस चुके हैं। इससे गांव में पारिवारिक झगड़े, चोरी, और बेरोजगारी जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।
गांव की महिलाएं सबसे ज्यादा परेशान हैं। एक स्थानीय महिला बताती हैं — “हमारे पति और बेटों की कमाई का पैसा शराब में चला जाता है। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। अगर कुछ बोलें तो उल्टा झगड़ा होता है।” यह बयान इस बात का प्रमाण है कि शराबबंदी के बावजूद परिवारिक स्तर पर इसका कितना गहरा असर पड़ रहा है।
शराबबंदी कानून की पोल खुलती हकीकत
बिहार में 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है, लेकिन झाकहार चौहान टोला में इसका जमीनी असर नगण्य दिखता है। यहां तक कि कई बार पुलिस की कार्रवाई भी औपचारिक साबित होती है। ग्रामीणों का आरोप है कि “कुछ लोगों के संरक्षण में यह धंधा फल-फूल रहा है। जब तक प्रशासनिक स्तर पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक गांव को इस बुराई से मुक्ति नहीं मिल सकती।”
स्रोतों से पता चलता है कि पड़ोसी राज्यों से शराब की तस्करी कर यहां लाया जाता है और गांव के अंदर छोटे-छोटे ठिकानों में बेचा जाता है। यह कारोबार न सिर्फ कानून का उल्लंघन है बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए सामाजिक और मानसिक जहर बन चुका है।
गांव के बच्चों पर पड़ रहा असर
गांव के स्कूल शिक्षकों का कहना है कि अब बच्चों में अनुशासन और पढ़ाई की रुचि घटती जा रही है। कई बच्चे अपने घरों में होने वाली शराबखोरी की घटनाओं से मानसिक रूप से प्रभावित हैं। स्कूल में ध्यान देने के बजाय वे घर के झगड़ों में उलझ जाते हैं। “अगर यही हाल रहा तो अगली पीढ़ी अंधकार में डूब जाएगी,” एक शिक्षक ने दुख जताते हुए कहा।
प्रशासन से कार्रवाई की मांग
स्थानीय समाजसेवियों और पंचायत प्रतिनिधियों ने प्रशासन से मांग की है कि झाकहार चौहान टोला में विशेष अभियान चलाकर शराब माफियाओं पर सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही शराब पीने और बेचने वालों पर जुर्माने के साथ सामाजिक सुधार कार्यक्रम चलाए जाएं ताकि लोग इस बुराई से दूर हों।
गांव के एक शिक्षक ने कहा — “सरकार को केवल कानून बनाकर नहीं, बल्कि गांव स्तर पर जनजागरूकता अभियान चलाना चाहिए। तभी शराबबंदी का सही असर दिखेगा।”
झरकाहा चौहान टोला की यह स्थिति सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि बिहार के कई हिस्सों की सच्चाई बयां करती है।