अररिया जिले के नरपतगंज प्रखंड क्षेत्र में इन दिनों स्मैक का नशा तेजी से अपने पैर पसार रहा है। यह जहरीला जाल गांव से लेकर कस्बों तक युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। कभी शांत और मेहनती जीवन के लिए पहचाने जाने वाले इस क्षेत्र में अब स्मैक की तस्करी और सेवन एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, पहले जहां शराबबंदी के बाद नशे की प्रवृत्ति में थोड़ी गिरावट आई थी, वहीं अब स्मैक ने उसकी जगह ले ली है। खासकर 15 से 30 वर्ष की आयु वर्ग के युवा इस नशे के शिकार बनते जा रहे हैं। खेतों में काम करने वाले मजदूर से लेकर कॉलेज जाने वाले छात्र तक इसकी चपेट में हैं। स्मैक के सेवन से युवाओं का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, परिवार बर्बाद हो रहे हैं और समाज में अपराध की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
स्मैक का गुप्त कारोबार
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, नरपतगंज बाजार, सोनापुर, रामघाट कोशिकापुर और फुलकाहा जैसे इलाकों में स्मैक की छोटी-छोटी सप्लाई चेन सक्रिय हैं। ये कारोबारी गुप्त रूप से युवाओं को नशे का लालच देकर उन्हें अपने जाल में फंसा रहे हैं। रात के अंधेरे में सौदेबाजी होती है और पुलिस की नजर से बचने के लिए कोड वर्ड का इस्तेमाल किया जाता है। बताया जाता है कि नेपाल से आने वाले रास्तों के जरिए भी कुछ मात्रा में स्मैक की आपूर्ति की जाती है।
पुलिस की चुनौती और कार्रवाई
पुलिस प्रशासन ने इस पर अंकुश लगाने के लिए कई बार छापेमारी अभियान चलाया है। हालांकि कुछ तस्कर गिरफ्तार भी हुए हैं, लेकिन फिर भी नशे का नेटवर्क पूरी तरह नहीं टूट पाया है। थाना प्रभारी का कहना है कि “हम लगातार गश्त और निगरानी बढ़ा रहे हैं। स्थानीय लोगों की मदद से जल्द ही इस नशे के कारोबार पर पूरी तरह अंकुश लगाया जाएगा।”
लेकिन सच्चाई यह है कि तस्कर नए-नए तरीकों से पुलिस की पकड़ से बच निकलते हैं।
समाज और परिवार पर असर
स्मैक की लत से प्रभावित युवक धीरे-धीरे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। परिवार की जमा पूंजी नशे में खत्म हो जाती है, जिसके कारण घरों में झगड़े और टूटन बढ़ रही है। माता-पिता अपने बेटों को सुधारने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। कई युवाओं ने नशे के कारण अपनी पढ़ाई छोड़ दी है, जबकि कुछ चोरी या लूट जैसे अपराधों की ओर बढ़ रहे हैं ताकि नशे के लिए पैसे जुटा सकें।
स्कूल और समाज में जागरूकता की कमी
नरपतगंज क्षेत्र के विद्यालयों और पंचायत स्तर पर नशा मुक्ति अभियान की बहुत जरूरत महसूस की जा रही है। शिक्षकों और समाजसेवियों का कहना है कि अगर प्रशासन और समाज दोनों मिलकर युवाओं को जागरूक करें तो इस बढ़ते संकट पर अंकुश लगाया जा सकता है। पंचायत स्तर पर नशा मुक्ति शिविर, जागरूकता रैली और स्कूलों में नशे के दुष्प्रभाव पर विशेष सत्र आयोजित करने की आवश्यकता है।